जब महिलाएं प्रेग्नेंट होती हैं तो उन्हें इस स्थिति में कई तरह की चीजें सीखने को मिलती हैं. इन दिनों में जैसा अनुभव महिलाओं को होता है शायद ही ऐसा अनुभव किसी और को हो सकता हो. इसके साथ ही वह अपनी इन भावनाओं को किसी के सामने दिखा भी नहीं पाती हैं. कई बार महिलाओं को प्रेग्नेंसी के दौरान शर्म भी महसूस होती है. वह बाहर खुलकर घूमने से डरती हैं. कुछ भी खाने से घबराती है. उनका शारीरिक और मानसिक तौर पर स्वस्थ रहना जरूरी होता है. ऐसे में कई बार वह स्ट्रेस में आ जाती हैं.
हालांकि उन्हें हर स्थिति का सामना करना आ जाता है. महिलाओं को इस दौरान बेहद ही तेज दर्द होता है जो उन्हें बुरी तरह से तोड़कर रख देता है. onlymyhealth की एक रिपोर्ट के अनुसार जब महिलाएं पहली बार मां बनती हैं उनके लिए तो ये दर्द असहनीय होता है. इस दर्द की वजह से उनको कई तरह की दिक्कतों का भी सामना करना पड़ता है. आइए जानते हैं प्रेग्नेंसी और प्रसव के दौरान महिलाओं को किन-किन समस्याओं से गुजरना पड़ता है और आज के समय में कैसे उन समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है.
डिलीवरी के दौरान दर्द
कुछ महिलाओं को इस दौरान कम दर्द महसूस होता है जबकि कुछ को असहनीय दर्द होता है. कुछ महिलाओं को तो टाइम इंटरवेल के दौरान बार-बार दर्द होता है. प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं को किसी अच्छे डॉक्टर के संपर्क में रहना चाहिए जो उन्हें समय-समय पर बेहतर सलाह देते रहें. इससे डिलीवरी में भी कुछ हद तक राहत मिलती है. डॉक्टर की सलाह मिलने से महिलाएं डिलीवरी के समय में काफी हद तक पहले से ही तैयार हो जाती हैं. उन्हें दर्द सहने की भी ताकत मिलती रहती है.
बच्चे के जन्म के बाद रक्तस्राव
प्रेग्नेंसी में कुछ ऐसी चीजें होती है जो महिलाओं को कोई नहीं बताता है. उन्हें खुद से ही मानसिक और शारीरिक दोनों ही तरीकों से तैयार रहने की जरूरत होती है. दरअसल डिलीवरी के दौरान बहुत ज्यादा खून बह जाता है और शरीर में पानी की बहुत कमी हो जाती है. बच्चे को जन्म देने के बाद, चाहे वह नॉर्मल डिलीवरी हो या फिर ऑपरेशन, ऐसे में मां के शरीर से खून निकलता है. इसके बाद भी उन्हें करीब 4 से 6 सप्ताह तक रक्तस्राव हो सकता है हालांकि यह धीरे-धीरे कम होते होते बंद हो जाता है लेकिन इस दौरान मां का ख्याल रखा जाना बहुत जरूरी होता है.
शरीर का कमजोर होना
प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं को अपनी सेहत का पूरा ख्याल रखना चाहिए. उन्हें अपनी डाइट में हर वो फूड शामिल करना चाहिए जिससे उन्हें पौष्टिक तत्व मिलते हों. इस समय मां की डाइट का अंश बच्चे के विकास में भी मदद करता है. ऐसे में हेल्दी डाइट लेना बहुत जरूरी होता है. वहीं प्रेग्नेंसी के दौरान कई महिलाओं को किसी भी वक्त कुछ भी खाने का मन कर जाता है जिसमें खट्ठा, मीठा, तीखा, चटपटा और ठंडा शामिल हो सकता है. ऐसे में घबराएं नहीं. गर्भावस्था में ये एक आम बात है. इस समय जो मन करे वो खाना चाहिए.
प्रेग्नेंसी में मूड स्विंग
प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं के शरीर में कई तरह के उतार-चढ़ाव आते हैं. हॉर्मोन का लेवल बदलना, शारीरिक परिवर्तन, थकान, स्ट्रेस, खाने में बदलाव और मूड स्विंग आपके लाइफस्टाइल को प्रभावित करता है. अगर आप प्रेग्नेंट हैं और आपके मूड में बार-बार बदलाव हो रहा है तो आपको इसे समझने की जरूरत है. प्रेग्नेंट महिलाओं को आमतौर पर 6 से 10 सप्ताह के बीच मूड स्विंग का अनुभव होता है. मूड स्विंग के दौरान अचानक कभी भूख लग जाती है तो कभी किसी बात पर गुस्सा आ जाता है. यहां तक कि कई महिलाएं इस दौरान छोटी-छोटी बातों पर रोने और चीखने-चिल्लाने भी लगती हैं. प्रेग्नेंसी के दौरान सभी महिलाओं को इस दौर से गुजरना पड़ता है.
प्रसव के दौरान एपिड्यूरल
एपिड्यूरल प्रसव के दौरान दर्द से राहत पाने का एक आसान तरीका है. इसमें दर्द निवारक दवाओं को एक पतली नलिका के जरिए रीढ़ की हड्डी में पहुंचा दिया जाता है. webmd की रिपोर्ट के अनुसार एपिड्यूरल एक रीजनल एनेस्थेटिक है. इसका मतलब है कि दवा आपके शरीर के केवल एक हिस्से पर असर दिखाती है, इस मामले में यह दवा पेट के निचले हिस्से को सुन्न कर देती है. एपिड्यूरल लेने के बाद प्रेग्नेंट महिला जगी रहेंगी और उनके शरीर का केवल वही हिस्सा सुन्न होगा, जहां प्रसव के दौरान दर्द महसूस होता है.
एपिड्यूरल देने का तरीका
इसमें प्रेग्नेंट महिला को करवट लेकर लेटने और घुटनों को जितना ऊपर हो सके उतना मोड़ने के लिए कहा जाता है. ऐसा करने से एनेस्थेटिस्ट को रीढ़ के घुमाव को देखने में आसानी रहती है और वह पता लगा पाते हैं कि एपिड्यूरल को किस जगह पर लगाना है. इसके बाद एनेस्थेटिस्ट पीठ के निचले हिस्से और रीढ़ में उस जगह पर एक इंजेक्शन डालेंगे जिसे एपिड्यूरल स्पेस कहा जाता है. इसके बाद एक पतली ट्यूब या कैथेटर इस सुई के जरिए अंदर घुसाई जाती है.
जब कैथेटर सही जगह लग जाता है तो सुई को निकाल लिया जाता है. ट्यूब को पीठ पर टेप से चिपका दिया जाता है और कंधे के ऊपर डाल दिया जाता है ताकि यह गिरे नहीं. जब एपिड्यूरल दिया जा रहा हो, तो अपनी सांस पर ध्यान दें, ताकि आप एकदम स्थिर रह सकें. नाक के जरिए गहरी सांस अंदर लें और मुंह के जरिए धीरे-धीरे बाहर छोड़ें.
मां बनने में हो रही है परेशानी तो लें सरोगेसी और IVF की मदद
क्या है आईवीएफ (IVF)
आईवीएफ (IVF) एक फर्टिलिटी उपचार है जिसमें अंडों को शुक्राणु से अप्राकृतिक तरीके से मिलाया जाता है. यह प्रक्रिया मेडिकल लैब में नियंत्रित परिस्थितियों में की जाती है. यह प्रक्रिया इंफर्टिल दम्पति और उन लोगों के लिए सहायक है जिनको कोई जेनेटिक परेशानी है.
कब पड़ती है आईवीएफ (IVF) की जरूरत
निरुद्ध गर्भाशय नाल, शुक्राणु और अंडो के संपर्क में बाधा डाल सकती है. यह फर्टिलाइजेशन की प्रक्रिया में मुश्किलें ला सकती है. ऐसे में आईवीएफ की जरूरत पड़ती है. webmd की रिपोर्ट के अनुसार शुक्राणु की गणना, गतिशीलता या दोनों में कोई कमी होना IVF के लिए एक कारण बन सकता है.कई बार फर्टिलिटी उपचारों के असफल परिणाम के बाद, आपको IVF की सलाह दी जाती है. यह आपकी उम्र और असफल कोशिशों की संख्या पर निर्भर करता है. इसके अलावा अनुपयुक्त हार्मोनल पर्यावरण, अनियमित ओव्यूलेशन, अंडो की गुणवत्ता कम होना, बढ़ती उम्र और एन्डोमेट्रीओसिस (Endometriosis) की कुछ परिस्थितियों में इसकी जरूरत पड़ सकती है.
क्या है सेरोगेसी (Surrogacy)
सेरोगेसी बच्चे पैदा करने की एक नई तकनीक है. इस तकनीक में माता या पिता किसी की भी शारीरिक कमजोरी की वजह से यदि बच्चा पैदा करने में परेशानियां हो रही हैं तो वह इसकी मदद ले सकते हैं. webmd की रिपोर्ट के अनुसार सेरोगेसी में किसी महिला की कोख को किराए पर लिया जाता है. कोख किराए पर लेने के बाद आईवीएफ के जरिए शुक्राणु को कोख में प्रतिरोपित किया जाता है. जो महिला किसी दंपत्ति के बच्चे को अपनी कोख में पालती है उसे सेरोगेट मदर कहा जाता है. किराए पर कोख लेने वाली महिला और दंपत्ति के बीच एक खास एंग्रीमेंट किया जाता है. सेरोगेट मदर को प्रेग्नेंसी के दौरान अपना ध्यान रखने और मेडिकल जरूरतों के लिए पैसे दिए जाते हैं.